दिव्यागों के प्रति समाज का दायित्व


Published Date: 11-11-2024 Issue: Vol. 1 No. 4 (2024): November 2024 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download
आरंभिक अनुच्छेद: वर्तमान समय में दिव्यांग एक पारिवारिक ही नहीं सामाजिक समस्या है। दिव्यांग एक प्रकार से प्राकृतिक अभिशाप है, परन्तु यदि दिव्यांग व्यक्ति की इच्छा शक्ति को सहयोग मिल जाये तो वह भी साधारण व्यक्ति की भाँति समस्त कार्यों को सम्पन्न कर सकता है। हिन्दी साहित्य में विमर्श का युग चल रहा है जैसे-स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श, दलित विमर्श, किन्नर विमर्श, वृद्ध विमर्श, नाट्य-विमर्श, काव्य विमर्श तथा दिव्यांग विमर्श आदि विद्वत्जनों प्रतिपादित किया है कि विमर्श का कोई स्थायित्व नहीं होता है, बल्कि यह तत्कालीन होता है, आता है तथा चला जाता है। इतना अवश्य है कि यह सामाजिक दूरकता के लिए अपेक्षित नए संदर्भों में साहित्य का सार्थक मूल्यांकन विमर्श ला सकता है।