साहित्य में चेतना का परिदृष्य


Published Date: 02-11-2024 Issue: Vol. 1 No. 4 (2024): November 2024 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download
सारांशः ‘साहित्य में चेतना का परिदृश्य‘ विषय पर यह शोधपत्र साहित्य में चेतना के विभिन्न स्वरूपों का विश्लेषण करता है। चेतना का तात्पर्य व्यक्ति, समाज, संस्कृति, और समय के प्रति जागरूकता से है, जो साहित्य में समाज और व्यक्ति की भावनाओं, विचारों, एवं अनुभवों को अभिव्यक्त करता है। इस शोधपत्र में साहित्य के माध्यम से सामाजिक चेतना, राजनीतिक चेतना, स्त्री चेतना, दलित चेतना, और आध्यात्मिक चेतना जैसे विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया गया है। भारतीय साहित्य में चेतना का उभरना और उसके विविध रूपों का प्रभावी चित्रण यह दर्शाता है कि कैसे साहित्यकार अपने समय की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों के प्रति संवेदनशील रहते हैं। यह शोधपत्र विशेष रूप से इस बात पर प्रकाश डालता है कि साहित्य न केवल समाज के वास्तविक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करता है, बल्कि समाज में चेतना और परिवर्तन के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनता है। इसके अंतर्गत प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक साहित्य में चेतना के विभिन्न आयामों का अध्ययन किया गया है। यह शोधपत्र चेतना के माध्यम से साहित्य के प्रेरणास्रोत रूप को दर्शाता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए साहित्य की भूमिका को रेखांकित करता है।
मुख्य शब्दः साहित्य, चेतना, सामाजिक चेतना, राजनीतिक चेतना, स्त्री चेतना, दलित चेतना, आध्यात्मिक चेतना, सामाजिक परिवर्तन, भारतीय साहित्य, समकालीन साहित्य।