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असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययनः एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

कृष्ण मोहन, शोधार्थी समाजशास्त्र, अकबरपुर डिग्री कॉलेज अकबरपुर, कानपुर देहात डॉ0 रश्मि पाण्डेय, असिस्टेण्ट प्रोफेसर-समाजशास्त्र विभाग, अकबरपुर डिग्री कॉलेज, अकबरपुर, कानपुर देहात   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i60016   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i60016
Published Date: 10-06-2025 Issue: Vol. 2 No. 6 (2025): June 2025 Published Paper PDF: Download

सारांश: महानगरों में नौकरी करने वाली मध्यमवर्गीय महिला की त्रासदी किसी सजा से कम नहीं सुबह उठकर जल्दी-जल्दी घर के काम फिर पूरे दिन ऑफिस का काम फिर बसों में धक्का खाना, शारीरिक उत्पीड़न सहना भीड़ में अश्लील फिकरे सुनना, शाम को फिर घर-परिवार के कामों में लग जाना। कार्यशील महिला के बोझ को जानबूझकर भुला दिया जाता है, आज वास्तविकता यह है कि नारी सभी क्षेत्रों में अपनी सफलता के परचम लहलहा रही हैं लेकिन फिर भी दुर्भाग्य है कि कार्यशील नारी को कोई समझने को ही तैयार नहीं है दुनिया में बदलाव तीव्रगति और हर तरफ से हो रहा है। पढ-लिखकर विकास की दौड़ में आ खड़ी हुई महिलायें कामकाज की दुनिया में शामिल हो रही हैं आज महिलाएं शिक्षा एवं जीविका के साधनों के लिए किसी की मोहताज नहीं हैं। आज नारी को अपनी बात कहने एवं स्वतन्त्र रूप से अपने विचारों को प्रकट करने का अधिकार है। आज समाज में उसकी प्रतिष्ठा है, वह अपना जीवन अपने ढ़ती जा रही है महिला श्रम का अधिकांश हिस्सा कृषि और व्यापार के क्षेत्र में इस्तेमाल होता है। अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के प्रबंधकों का मानना है कि स्त्री श्रम का उपयोग आर्थिक दृष्टि से बहुत ही लाभकारी है महिलायें सहनशील होती हैं शिकायत नहीं करती हैं और ट्रेड यूनियन के चक्कर में बहुत ही कम पड़ती हैं। केट मिलेट ने महिला-पुरुष संबंधों की जड़ों को देखा है उनके अनुसार पितृसत्ता को कमजोर करने के लिए आवश्यक है कि नारी को पुरुष के बराबर अधिकार मिले। कानूनी रूप से दोनों को समानता प्राप्त हो, नारी को वित्त सम्बन्धी चीजों में भी बराबर अवसर प्राप्त हो। समान वेतन और समान सुविध् ाायें प्राप्त हो महिलाओं की विशिष्ट लिंगीय समस्यायें है उनके समाधान हेतु विशेष प्रावधान हो महिला संघर्षो के हेतु सहानुभूति अन्याय का विरोध साहित्य में उसके संपादन की कोशिश समस्त अधिकारों की अधिकारिणी बने स्वतन्त्र पहचान अर्जित करें अपने संगठन बनाये अपनी खुद की राजनीति करे साथ ही वैकल्पिक राजनीति करें और अपना अस्तित्व प्राप्त करे महिलाओं की लड़ाई मात्र उत्पीड़न तक उसके विरोध तक सीमित नहीं होनी चाहिए।


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