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स्वतंत्रता आंदोलन में डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का योगदान

डॉ0 राधे श्याम, पूर्व शोध छात्र, इतिहास विभाग, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i60015   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i60015
Published Date: 10-06-2025 Issue: Vol. 2 No. 6 (2025): June 2025 Published Paper PDF: Download

सारांश : अध्ययन का उद्देश्य यह प्रतिपादित करना है कि अम्बेडकर ने स्वाधीनता को केवल औपनिवेशिक सत्ता-परिवर्तन नहीं माना, बल्कि उसे “सामाजिक लोकतंत्र” की शर्तों समान नागरिकता, अधिकार-आधारित राज्य और प्रतिनिधिक संस्थाएँ से अभिन्न रूप में जोड़ा। शोध 1919-1947 की काल-सीमा पर केंद्रित है, जबकि 1947-1950 के संविधान-निर्माण के माध्यम से वैचारिक निरंतरता भी रेखांकित की गई है। पद्धति में प्राथमिक स्रोत (भाषण, ज्ञापन, पत्र, सरकारी अभिलेख) तथा समकालीन पत्र-पत्रिकाओं के साथ द्वितीयक इतिहास लेखन का समालोचनात्मक उपयोग किया गया है। लेख तीन प्रमुख तर्क विकसित करता है। प्रथम, महाड़ सत्याग्रह और कालाराम मंदिर प्रवेश जैसे अभियानों ने स्वतंत्रता की धारणा को दैनंदिन नागरिकता अधिकारों जलस्रोत, पूजा-स्थल और सार्वजनिक स्थान की ठोस माँगों से जोड़कर “राजनीतिक स्वराज” के साथ “समान नागरिकता” को अनिवार्य पूर्व-शर्त के रूप में प्रतिष्ठित किया। द्वितीय, गोलमेज़ सम्मेलनों में पृथक निर्वाचिका और आरक्षित प्रतिनिधित्व पर अम्बेडकर का आग्रह, तथा उसके पश्चात् पूना पैक्ट, राष्ट्रवादी राजनीति के शक्ति-संतुलन, दलित स्वायत्तता और लोकतांत्रिक संस्थाकरण की दिशा को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। तृतीय, श्रमिक नीति, न्यूनतम वेतन, शिक्षा-नीति तथा प्रशासनिक सुधारों पर अम्बेडकर का सतत हस्तक्षेप स्वतंत्रता-संग्राम को सामाजिक-आर्थिक न्याय के कार्यक्रम से जोड़े रखता है और “समान अवसर” की धारणा को राजनीति के केंद्र में स्थापित करता है। अध्ययन का महत्व इस समेकित दृष्टि में निहित है कि यह राष्ट्रीय आंदोलन की “मुख्यधारा” को वंचित समुदायों के अनुभवों और दलित विमर्श के साथ समाकलित कर पढ़ता है। निष्कर्षतः, अम्बेडकर का वैचारिक, संगठनीय और संवैधानिक योगदान भारतीय राष्ट्रवाद को बहुवचनात्मक, सहभागी और प्रतिनिधि ढाँचे की ओर अग्रसर करता है; यही निरंतरता संविधान-निर्माण में मूल अधिकार, समानता और आरक्षण प्रावधानों के रूप में साक्ष्यरूप से प्रकट होती है। इस प्रकार, औपनिवेशिक अवरोध के साथ-साथ जाति आधारित असमानता का उन्मूलन स्वतंत्रता की अपरिहार्य शर्त के रूप में प्रतिष्ठित होता है, जो भारतीय लोकतंत्र की दीर्घकालिक वैधता और सामाजिक समावेशन के लिए आधार निर्मित करता है।

मुख्य-शब्दः:डॉ. भीमराव अम्बेडकर; स्वतंत्रता आंदोलन; महाड़ सत्याग्रह; गोलमेज़ सम्मेलन; पूना पैक्ट; सामाजिक लोकतंत्र; समान नागरिकता; श्रमिक नीति; प्रतिनिधित्व; संविधान-निर्माण ।


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