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हिंदी साहित्य पर दर्शन का प्रभाव

डॉ0 भास्कर मिश्र, सहायक आचार्य, श्री अरविंद महाविद्यालय (सांध्य), मालवीय नगर, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i60011   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i60011
Published Date: 07-06-2025 Issue: Vol. 2 No. 6 (2025): June 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: हिंदी साहित्य में दर्शरचनाओं में विशिष्टाद्वैतवाद, नाथपन्थी कवियों की रचनाओ में जैन दर्शन के द्वैतवादी तत्वमीमांसा का प्रभाव दृष्टिगोचर होना शुरू हो जाता है। हिंदी साहित्य के स्वर्ण युग पूर्वमध्ययुगीन साहित्य में द्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद और सूफी दर्शन का प्रभाव स्पष्ट है। तुलसीदास के रामचरितमानस में वैदिक और वेदांत दर्शन के तत्व मिलते हैं। मध्ययुगीन रीतिकाल ने जीवन और सौंदर्य को दार्शनिक दृष्टि से देखने का प्रयास किया है। इसके साथ ही आधुनिक साहित्यिक रचनाकारों की रचना प्रक्रिया में यथार्थवाद, गांधीवाद, समाजवाद, वेदान्तवाद एवं प्रकृतिवाद जैसे अनेक भारतीय दर्शन के तत्व दृष्टिगोचर होते हैं। हिंदी साहित्य में भारतीय दर्शन के प्रवेश ने कुछ मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया है, जैसे- अस्तित्व का मूल आधार क्या है? यथार्थ क्या है? पदार्थ, जीवन और आत्मा की प्रकृति क्या है? क्या आत्मा का अस्तित्व होता है? इसके साथ ही, इन सब बातों के उद्देश्य पर भी विचार किया गया है।

मूल शब्द: भारतीय दर्शन, हिंदी साहित्य, भक्तिकाल, तुलसीदास, अद्वैतवाद।


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