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अंसगठित क्षेत्रों में बाल श्रमिकों को प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors: डॉ० रश्मि पाण्डेय, असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, अकबरपुर महाविद्यालय अकबरपुर, कानपुर देहात   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i70008   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i70008
Published Date: 05-07-2025 Issue: Vol. 2 No. 7 (2025): July 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: असंगठित क्षेत्रों में बाल श्रमिकों के द्वारा किये जाने वाले व्यवसायों एवं विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में कार्यरत बाल श्रमिक तथा उन व्यवसायों से संबंधित बाल श्रमिकों के प्रकारों के अन्तर्गत अपने व्यवसायों को किस तरह एक-दूसरे से अनुकरण करना एवं उन व्यवसायों में रूचि रखते हुये उनका किस तरह से प्रचार करते हैं व बालश्रम को प्रेरित करने वाले कारक से संबंधित जानकारी एवं व्यवसायों में कार्यरत् कितने घण्टे का समय बाल श्रमिकों द्वारा किया जाता है, आदि सम्पूर्ण जानकारी प्रस्तुत अध्ययन द्वारा ज्ञात की गई है। विश्व के अधिकांश देशों में स्थायी रहने वाले असंगठित बाल श्रमिकों की आवृत्ति चलते फिरते बाल श्रमिकों की तुलना में काफी अध् ि ाक है। स्थायी असंगठित बाल श्रमिकों से तात्पर्य है विभिन्न दुकानों पर, ठेलों पर आदि, चलते-फिरते बाल श्रमिकों से तात्पर्य है, रेलवे स्टेशनों, फुटपाथों, बस स्टैण्डों आदि पर कार्यरत बाल श्रमिक हैं, लेकिन विस्थापितों की आवृत्ति तेजी से बढ़ने के कारण सड़कों पर रहने वाले बच्चों की आवृत्ति भी तीव्रगति से बढ़ रही है।‘ भूमण्डलीयकरण के नाम से किए जा रहे साम्राज्यवादी बाजार के फैलाव के कारण विज्ञापन एजेंसियों में कार्यरत् अपेक्षाकृत अच्छे खाते-पीते परिवारों से आने जाने वाले बाल श्रमिकों की आवृत्ति बढ़ रही है। इस प्रकार के बाल श्रमिकों की जिंदगी सामाजिक स्थिति, आय, सोच आदि सब कुछ अन्य प्रकार के बाल श्रमिकों से बिल्कुल अलग है। बाल श्रमिकों का यह असंगठित समूह यद्यपि बहुत व्यापक है जो साम्राज्यवादी बाजार का एक हिस्सा बन चुका है परंतु आठवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य बालश्रम का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों जैसे-कृषि, उद्योग धन्धे तथा कल कारखानों में हो रहा था परन्तु वर्तमान समय में यह एक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में चुनौती के रूप में सामाजिक स्तर पर दिखाई देता है, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत ‘‘अर्न्तराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट‘‘ के अनुसार संपूर्ण विश्व में 10 करोड़ से भी अधिक बालश्रमिकों को कठिन कार्य में लगा हुआ पाया गया है, यह आवृत्ति वास्तविक रूप से दुगुनी भी हो सकती है, भारत में कार्य करने वाले बच्चों की आवृत्ति 1.65 करोड़ से 1.75 करोड़ के बीच अनुमानित है और लगभग 40 लाख बाल श्रमिक असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, अनुमानतः इस शताब्दी के अन्त तक बाल श्रमिकों की आवृत्ति 10 करोड़ हो जायेगी। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व के कुल बाल श्रमिकों का 25 प्रतिशत और एशिया के कुल बाल श्रमिकों को 33 प्रतिशत भारत में है।


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