कृषि विकास की समस्याएँः जनपद देवरिया (उ.प्र.) का एक भौगोलिक अध्ययन

सारांश- अध्ययन क्षेत्र जनपद देवरिया में भूमि ही सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिसका दोहन विभिन्न सामाजिक-आर्थिक क्रियाओं में हजारों वर्षों से किया जाता रहा है। यहाँ सम्पूर्ण आर्थिक तंत्र के केन्द्र में भूमि आधारित कृषि है, जिससे किसान इस प्रकार आबद्ध है कि उससे हटकर उसका कल्याण सम्भव नहीं है। फलस्वरूप समुचित कृषि सुधार के द्वारा ही ऐसी परिस्थितियाँ पैदा की जा सकती हैं, जिससे क्षेत्र का विपन्न किसान अपनी आर्थिक एवं सामाजिक दशा में सुधार कर सकता है। इस नगर का नामकरण ‘देवरण्य‘ शब्द से हुई है, जो देवरहा बाबा की जन्मस्थली है। इस क्षेत्र में ऐसी भू वैन्यासिक संगठन और समन्वित विकास योजना की आवश्यकता है, जिससे क्षेत्र में रोजगार प्राप्ति की सुविधा और आय में वृद्धि की सम्भावना हो। इसके लिए जहाँ एक ओर प्राकृतिक विपदाओं पर नियंत्रण आवश्यक है, तो दूसरी ओर कृषि अर्थव्यवस्था में नवीन तकनीकों एवं वैज्ञानिक प्राविधियों के प्रयोग से उत्पादन में अभिवृद्धि, कृषि का व्यापक व्यापारीकरण तथा उसमें विविधता उत्पन्न करने की आवश्यकता है, जिससे क्षेत्र के निवासियों को स्वास्थ्यप्रद भोज्य पदार्थ एवं जीवन की अन्य सुविध् ाायें प्रदान की जा सके। इससे जहाँ एक ओर भूमि के दुरूपयोग में कमी होगी, तो दूसरी ओर उसमें क्षेत्र की बढ़ती जनसंख्या के अधिभार को सहन करने की क्षमता में वृद्धि होगी, जिससे जनपद आत्मनिर्भर होकर कालान्तर में अन्य क्षेत्रों को अपने उत्पादनों का लाभ दे सकेगा।.
कूट शब्द: कृषि, प्राकृतिक संसाधन, फसल संयोजन, भूमि।